Friday 18 November 2016

दिगंबर जैन साधू की सबसे कठिन परीक्षा है ...केशलोंच |

 केशो में सूक्ष्म जीव हो जाते है जिनकी रक्षा का भाव ही इस कठिन परिषह को सरल बना देता है ,इसी वज़ह से चार माह में साधू को केशलोंच करने का नियम बनाया गया है ।अपने हाथों से केशों को उखाड़ कर दिगम्बर जैन संत इस बात का परिचय देते है की जैन धर्म कहने का नही बल्कि सहने वालो का धर्म है ।जैन धर्म में साधू संत कठिन से कठिन तपस्या को सहजता से सहन कर लेते है ।नग्न रहते है ,कैसा भी मौसम हो ,पद विहार करते है ..चाहे कितनी भी लंबी यात्रा क्यों ना हो एवं एक बार आहार ग्रहण करते है वो भी खड़े होकर..इन्हीं परिषहो में एक कठिन परिषह है -केशलोंच...



इस अवसर पर मुनिश्री प्रज्ञा सागर जी महाराज ने कहा... दिगम्बर जैन संत हर कठिनताओं को हर कष्टों को बड़ी सहजता से सहन करता है ।क्यों की जैन धर्म...कहने वालों का नहीं ,सहने वालों का धर्म है ..हमने कभी अपने कष्टों को कहा नहीं ,हमने अपने कष्टों का सहा है इसीलिए जैन मुनि के 22 परिषह बताये है ,ये सभी कष्टों को जैन साधू हँसते हुए सहन करते है।
मुनि श्री ने कहा मैंने यह सन्यास यह दीक्षा किसी के कहने में किसी के बहकावे में ,ज़ोर और जबरदस्ती से स्वीकार नही की...आत्म इच्छा से आत्म प्रेरणा से..मन से मैंने ये सन्यास स्वीकार किया है ।यही वज़ह है की मन से स्वीकार करने के कारण आज मैं अपनी साधनामय ज़िन्दगी के सभी पहलूओं को..बड़े आनंद से भर कर के जीता हूँ..आज उसी श्रृंखला में जैन साधू केशलोंच करते है दो महीने में चार महीने के भीतर भीतर केशों का लोचन कर लिया जाता है।


आपके बाल बढ़ते है आप सेलून में पहुँच जाते है बाल कटवा लेते है ।आपके बाल आपकी शारारिक सुदंरता को बढ़ाते है और मेरे बाल मेरे केशलोंच मेरी आत्मा की सुंदरता जो बढ़ाते है ।जैन साधू जब केश लोंच करता है तो उसका तेज़ तो बढ़ता ही है उसकी आत्मा की सुंदरता भी कई गुना बढ़ जाती है ।यही वज़ह है जैन साधू अपने आत्म सौंदर्य को बढ़ाने के लिए वह कठिन से कठिन साधना को करता है। इसी श्रृंखला में आज ये केशलोंच जो की मैंने 28 जुलाई को किया था आज छोटा गिरनार में बैठ कर पुनः कर रहा हूँ.. क्यों की मेरा बहुत मन था की मैं एक बार खुले में केशलोंच करूँ..और सारा बापूगाँव जैन साधू की इस कठिन चर्या को देखे और जाने...इसी वज़ह से मैंने छोटा गिरनार की तलहटी में बैठ कर केश लोंच कर रहा हूँ...


45 से 50 मिनट की यह प्रक्रिया है और जिस दिन जैन मुनि ये केशलोंच करते है उस दिन उपवास भी रखते है ,सिर्फ इसीलिए की मेरे केशों के लुंचन से बालो में होने वाले जीवों का घात हुआ उन्हें कष्ट हुआ हो तो उसके प्रयाश्चित स्वरुप मैं उपवास करता हूँ,मेरी आत्मा के परिणाम विकृत हुए हो मैंने सोचा हो की ये कठिन साधना क्यों बनाई ,मेरे भाव ना बिगड़े ये सभी बातो को ध्यान ने रखकर उपवास किया जाता है । इस तरह आप सभी मेरे केश लोंच की इस प्रक्रिया को शांति पूर्वक एवं बड़े आनंद से भरकर देखे..

इस तरह पूज्य गुरुदेव ने अपना 28वाँ स्वर्णिम चातुर्मास के समापन के बाद अपना केश लोंच समस्त बापूगाँव वासियो के समक्ष सम्पन किया। वो भी इतने विशेष दिन ये केशलोंच किया जब छोटा गिरनार के आज 1 वर्ष पूर्ण हुए और इसी दिन पूज्य गुरुदेव ने अपना केश लोंच किया । 
उल्लेखनीय है की...


18 नवम्बर 2015 को...
आज ही के दिन इस छोटा गिरनार तीर्थ का शिलान्यास और भूमि पूजन मुनिश्री के ही सानिध्य में सानन्द संपन्न किया गया था ।और पूरे एक साल के पहले ही इस तीर्थ ने अपनी सम्पूर्णता को प्राप्त कर लिया ।ये गुरुदेव की प्रेरणा और दृढ़ निश्चय से ही सम्भव हो पाया है जो हम तीर्थ का पहला स्थापना दिवस उसके पूर्णता के साथ मना रहे है ।

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